Shree Vishnu Sahasranamam Mahima




श्री महाभारत ग्रंथ में दिया गया श्री विष्णु सहस्त्रनाम सबसे ज्यादा प्रचलित सहस्त्रनाम है। यह एक ऐसा सहस्त्रनाम है जिसे स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं खड़े रहकर अनुमोदन किया है। यह परम् तेजस्वी श्री भीष्म पितामह द्वारा तनावग्रस्त, शंकाग्रस्त, व्यग्र श्री युधिष्ठिर जी को आखिरी समाधान के तौर पर बताया गया है। यह नाम भगवान के साकार रूप तथा निराकार रूप दोनो की उपासना में पढ़े जा सकते हैं। यहाँ तक सिक्ख धर्म मे कुछ भाई श्री हरि के 1000 नाम पढ़तें हैं। श्री विष्णु सहस्त्रनाम एक तरह से आपको लगभग 30 मिनट की भगवन्नाम जप साधना हेतु बैठाने में समर्थ है। सामान्यतः इस सहस्त्रनाम हेतु विशेष दीक्षा हेतु कोई आवश्यक शर्त नहीं है। कोई भी, कहीं भी, किसी भी मानसिक अवस्था में जपा जा सकता है। ऐसा भी कहा जाता है, कलयुग में अधिकांश मन्त्र शापित, कीलित हैं, परन्तु श्री विष्णु सहस्रनाम में ऐसा कोई बंधन नहीं हैं। यह भवसागर को पार करने का सरलतम उपलब्ध उपाय है।






श्री विष्णु सहस्रनाम महिमा :-

श्री तुलसी दास जी ने कहा है -

जानें बिनु न होइ परतीती।
बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती॥
प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई।
जिमि खगपति जल कै चिकनाई॥4॥

प्रभुता जाने बिना ईश्वर पर विश्वास नहीं जमता, विश्वास के बिना प्रीति नहीं होती और प्रीति बिना भक्ति वैसे ही दृढ़ नहीं होती जैसे हे पक्षीराज! जल की चिकनाई ठहरती नहीं।
इसलिये यहां श्री विष्णु सहस्रनाम की महिमा, प्रभाव के बारे में जो भी जानकारी कहीं से भी उपलब्ध हुई है, उसका संकलन दिया जा रहा है। ताकि हमारा मन श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ में लगे। सच्चाई यही है कि मन को लालच दिये बिना यह किसी काम में नहीं लगता।


देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी श्री के एन राव कुंडली का केवल एक ही उपाय बताते हैं कि सुबह उठकर स्नानकर सबसे पहले श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करे, बस और कोई उपाय नहीं। उन्होंने दस हज़ारों की संख्या में लोगों को लाभ प्राप्त करते देखा है। श्री के एन राव भारत के एकमात्र ज्योतिषी हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में ज्योतिष भविष्यवाणी को सही साबित करने हेतु मुकदमा लड़ा और जीता भी। जिन्हीने दिल्ली में भारतीय विद्या पीठ में ज्योतिषी पाठ्यक्रम शुरू किये। विशेषतः बुध और बृहस्पति की दशा में तो विशेषकर पाठ कर सकते हैं।

श्री कांची पीठ के परम आदरणीय शंकराचार्य श्रद्धेय महापरिवा श्री चंद्रशेखर सरस्वती जी ने भी एक लीला कर श्री विष्णु सहस्रनाम की महिमा और श्री शिव जी और श्री विष्णु में साम्य दर्शाया था। एक दिन शिव पूजन के कार्यक्रम के दिन तीव्र ज्वर हो जाने पर उन्होंने वैदिक ब्राह्मणों द्वारा श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करवाया, तब ज्वर उतर जाने पर जनसमूह के सामने श्री शिव पूजन हेतु उपस्थित हो पाये।





श्री साई सद्चरित्र पुस्तक के अनुसार, शिरडी के श्री साई बाबा ने अपने एक भक्त से कहा कि," शमा, एक दिन मेरे हृदयँ में घबराहट हुई, तो मैने श्री विष्णु सहस्रनाम की पुस्तक को सीने से लगाया तो मुझे लगा अल्लाह उतर आया है और मुझे आराम आ गया है। इस सहस्त्रनाम को पढ़ना बहुत अच्छा है, चाहें एक नाम रोज़ पढ़ो।" साई बाबा के भक्त श्री राधा कृष्ण स्वामी जी महाराज भी जीवन भर लोगों से श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करवाते रहे। आज भी साई बाबा के कई भक्त श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।

श्री स्वामी शिवानंद सरस्वती जी ( डिवाइन लाइफ सोसाइटी, ऋषिकेश) के शिष्य श्री चिन्मयानंद जी महाराज तथा श्री कृष्णानंद जी ने भी हज़ारों लोगों को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने को प्रेरित किया।

एक डॉक्टर साहब  जिन्होंने अपनी प्रैक्टिस एवं नर्सिंग होने छोड़कर अपना जीवन श्री विष्णु सहस्रनाम की साधना को समर्पित कर दिया, उन्होंने सामूहिक पाठ द्वारा समुद्र के किनारे आने वाली तबाही को नियंत्रित करने में अद्भुत परिणाम देखे, उन्होंने 3000 से लेकर 20000 तक घरों में सामूहिक पाठ करवाये, कई मिश्रित परिणामों जो आये, समुद्र का भयावह प्रकोप काम होने के साथ साथ, उसमे में एक बात जो तय थी वो ये कि जिन घरों में सहस्त्रनाम का पाठ किया गया, सबने सकारात्मक परिवर्तन महसूस किए।

सबसे ज्यादा टीका/ व्याख्या इसी सहस्त्रनाम पर लिखी गयी हैं, आदि शंकराचार्य जी श्री ललिता सहस्त्रनाम पर व्याख्या लिखना चाहते थे, पर आदि शक्ति माँ ने एक छोटी कन्या के रूप में आ कर पहले श्री विष्णु सहस्रनाम पर भाष्य लिखने को कहा। भारत मे लगभग सभी श्री हरि , श्री कृष्ण, श्री राम जी के मंदिरों में वेंकटेश सुप्रभातम तथा श्री विष्णु सहस्त्रनाम द्वारा पूजा, अर्चना की जाती है, भगवान को प्रातः उठाया जाता है।  आदि शंकराचार्य जी   द्वारा निम्न श्लोक में भी सहस्रनामम पढ़ने के लिए कहा गया है। 



श्री गीता प्रेस के आदरणीय श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी कहते हैं, स्तुति प्रार्थनाओं को मात्र कविता न समझ लें, जिस प्रकार हीरा, पन्ना, माणिक अलग अलग भी बहुत ही कीमती और आकर्षक होते हैं, यदि कोई पारखी जोहरी उन्हें एक राजमुकुट पर जड़ दें, उनकी शोभा एवं भव्यता, प्रभाव देखने लायक होता है, उसी प्रकार सिद्ध, सामर्थ्यवान भीष्म जीने श्री भगवान के पावन नामों को एक विशेष क्रम में जड़कर श्री विष्णु सहस्रनाम की रचना की है। जिसकी शोभा एवम महत्व अनुपम है।

श्री भालचंद्र ठाकर जी   ने देव शंकर बापा से पूछा कि श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से क्या सच में जो लिखे हैं वे फायदे होते हैं? तब बापा ने कहा :- श्री भीष्म पितामह जैसे पवित्र पुरुष बाण शैया पर पड़े हों, श्री युधिष्ठिर जैसे सत्यनिष्ठ पूछनेवाले हों और भगवान श्रीकृष्ण की हाजिरी हो तब भगवान के कहने से श्री युधिष्ठिर मानव जाति के कल्याण के लिए प्रश्न करते हों ऐसी बात में क्या हमसे शंका हो सकती है???किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की तकलीफ हो और वह व्यक्ति श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ करें तो उसकी वह तकलीफ रहेगी नहीं।

श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ से कई लोगों के जीवन की रक्षा हुई, कई लोगों के बिखरें जीवन सवंर गये। कई लोगों ने कहा कोई चमत्कार तो नहीं हुआ परंतु जीवन में एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रादुर्भाव हुआ, और वो जिस स्थान पर हैं, श्री विष्णु सहस्रनाम के पाठ स्वरूप पहुँचे हैं।



एक बात ध्यान रखें कि श्री हरि आदिपुरुष महा विष्णु हमारे परम प्रिय हैं और इस संसार मे एक मात्र सुहृद हैं, एक मात्र सखा, रिश्तेदार हैं। ऐसा ध्यान करते हुए पाठ करें।

जिन्हें संस्कृत पाठ कठिन लगे वो 15-20 दिन यु-ट्यूब vedio सुनते हुए पढ़े, बाद में पढ़ना आसान हो जायेगा। एक विशेष बात , आपका मन पाठ में बैठने तक विद्रोह कर सकता है, आलस्य करेगा, प्रमाद करेगा लेकिन एक बार बैठ जाये तो धीरे धीरे आनंद आने लगता है। जो पढ़ ही ना पायें, वो सुनना तो कदापि बंद न करें। घर में सुबह चलायें। कुछ भी हो जाये पाठ बन्द न हो।



यह संसार एक आश्चर्य है, जो बहुत सूखी धनी देखें जाते है वो तो भगवन्नाम में विशेष रुचि न ले समझ में आता है, परन्तु एक से एक दुखी लोग भी लाख कहने पर भगवन्नाम नहीं जपते हैं, यह एक विडम्बना ही तो है। जबकि 'हारे को हरिनाम' ही तो है। अरे भाई इस कई वर्षों के जीवन में जहाँ रिश्ते नाते, धन, स्वास्थ्य, मान सम्मान कुछ भी स्थिर नहीं है, एक से भयंकर एक मानसिक तथा शारिरिक रोग हैं, पग पग पर प्रारब्ध जनित कष्ट है, फ़िर भी लोग आर्त भाव से भगवान की ओर रूख नहीं करते।

पाठ करते समय भाव बनाये रखने हेतु दी गईं छवियों का मन में ध्यान रखें।

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